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शुक्रवार, जून 04, 2010

रेलवे बोर्ड ने कैंसर के रोगियों का कोटा कम किया


      रेलवे बोर्ड ने अपने नये सर्कुलर में कैसर रोगियों को  इमरजेंसी कोटा से स्वत: प्रदान होने  वाले वाली सीट/बर्थ की संख्या को सीमित कर दिया है.इसने अपने पिछले सर्कुलर में परिवर्तन कर दिया है जिसमें कैंसर रोगियों को प्रथम प्राथमिकता देते हुये इमरजेंसी कोटे से स्वत: ही सीटें प्रदान कर दी जाती थी.
       इमेरजेंसी कोटा से तात्पर्य उस कोटे से है जिसके तहत उच्चपदाधिकारियों, सांसद , विधायक अथवा गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को सीटें प्रदान की जाती है. 
      पिछले 19 मई को जारी इस नये सर्कुलर में अब स्लीपर क्लास में 4 बर्थ, तथा केवल  2-2 बर्थ ही चेयर कार,  द्वितीय तथा तृ्तीय वातानुकुलित श्रेणी तथा   प्रथम श्रेणी में इमेरजेंसी कोटा के तहत प्रदान की जायेंगी. 
      आज से लगभग डेढ़ साल पहले उस समय के रेलवे  बोर्ड के सदस्य यातायात श्री प्रकाश ने एक सर्कुलर जारी कर यह नियम बना दिया था कि कैंसर  के रोगियों को प्रमाण पत्र दिखाने पर आरक्षण के समय ही इमेरजेंसी कोटा से स्वत: ही कन्फर्म सीट/बर्थ मिल जाया करेगी.
      कैंसर  रोगियों की बडी़ संख्या को देखते हुये ही यह कदम उठाया गया है. अब कम से कम अन्य रोगियों को भी ट्रेन में अंतिम समय में कन्फर्म बर्थ मिल जाया करेगी. 
      अभी तो होने यह लग गया था कि मुम्बई  , दिल्ली तथा चेन्नई जाने वाली गाडियों में  कभी कभी तो इमेरजेंसी कोटा वाली सारी की सारी सीटें ही कैंसर रोगियों को अलाट हो रही थी अन्य रोगी या लोग चाहे जितनी भी इमेरजेंसी हो किसी भी तरह कन्फर्म टिकट नहीं पा रहे थे.

शुक्रवार, मई 28, 2010

मेरे बेटे का स्कूल में पहला दिन

कल हर्ष पहली बार स्कूल गया. पिछले 4 महीनों से वह उत्साह से लबरेज था और रोज़ रोज़ मुझसे यही पूछता था कि पापा मै स्कूल कब जाउंगा?मेरा  दुर्भाग्य देखिये  कि उसका स्कूल में पहला दिन देखने के दिन ही मै घर में नहीं था.उसे सुबह 6.20 पर स्कूल पहुचना था और मेरी ट्रेन ही 6.20 में आयी. उसकी मां ही   उसे लेकर स्कूल गयी. उस दिन   वह भोर में 3 बजे ही उठ कर बैठ गया और मां द्वारा सुलाने की लाख कोशिश करने पर भी  नहीं सोया. बार बार  यही कहता था कि मुझे स्कूल जाना है. पर उस बेचारे की हिम्मत स्कूल के गेट पर पहुंचते ही टूट गयी और वह रोने लगा.काफी समझाने बुझाने के बाद वह अंदर गया. और कहते हैं न  कि " प्रथम ग्रासे मक्षिका पातम" वही बात हो गयी .उसके स्कूल के  नर्सरी की  क्लास 9.30 तक ही होती है  लेकिन हमें स्कूल की छुट्टी का समय 11.00 बजे पता था जो कि सिनियर क्लास की छुट्टी का समय है. इस लिये उसकी मां उसे लेने 11.00 बजे गयी तब जाकर पता लगा कि वह 1.30 घंटे से वहां हमें  ढुंढ रहा था और रो  रहा था.बेचारा! अब जब मै आफिस से घर आया तो उसने पहला सवाल  ही यही दागा कि पापा आप मुझे लेने क्यों नहीं आये? अब क्या बताउं कि मुझे उसे कितनी सफाई देनी पडी़.
आज स्कूल में उसका दूसरा दिन था. आज उसे  मै ही  स्कूल छोड़ने गया था . पहले तो उसने रोना रोया कि "मुझे स्कूल नहीं जाना मुझे वहां मजा नही आता".पर बाद में तैयार हो गया. और सुखद आश्चर्य कि वह आज न तो स्कूल के गेट पर रोया नही जब मै उसे लेने गया तो वह रोता हुआ दिखा.बल्कि घर आकर आज वह शुद ही किताब लेकर बैठ गया पढने के लिये.
 मुझे लगता है कि उसे अब धीरे धीरे स्कूल में मजा आने लगा है.
आमीन.